कांकेर : ग्राम डुमाली, जो शहर से मात्र 4 किलोमीटर दूर स्थित है, अब “तेंदुआ गांव” के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है। इस पहाड़ी क्षेत्र में पहले भी तेंदुए देखे जा चुके हैं, और 5 साल पहले इन्हीं तेंदुओं की तस्वीर भास्कर में प्रकाशित की गई थी। लेकिन हाल ही में इस गांव की प्रसिद्धि में और इजाफा हुआ है जब एक मादा तेंदुआ ने चार शावकों को जन्म दिया। यह घटना न केवल क्षेत्रवासियों के लिए रोमांचक है, बल्कि वन्यजीव प्रेमियों के लिए भी यह एक दुर्लभ दृश्य है।
मादा तेंदुआ और शावक
मादा तेंदुआ का प्रजनन काल मुख्यतः बारिश के समय में होता है, और वह एक बार में 2 से 4 शावकों को जन्म देती है। इस बार मादा तेंदुआ ने पहाड़ी पर चार शावकों को जन्म दिया, जिससे इस गांव की पहचान और भी बढ़ गई है। पूर्व वन्यजीव विशेषज्ञ मध्यप्रदेश के प्राण चड्डा ने बताया कि यह आमतौर पर मादा तेंदुआ का स्वाभाविक प्रजनन चक्र होता है, जिसमें वह शावकों को 2-3 साल तक देखभाल करती है।
तेंदुआ गांव की पहचान
जैसे ही मादा तेंदुआ ने शावकों को जन्म दिया, यह गांव “तेंदुआ गांव” के रूप में जाना जाने लगा है। डुमाली के लोगों में भी इसके प्रति एक विशेष गर्व की भावना देखी जा रही है। गांव में वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर अब और भी जागरूकता बढ़ रही है।
शावकों की तस्वीर
चारों शावकों की तस्वीर लेना एक बड़ी चुनौती थी। फोटोग्राफर विकास गुप्ता, जिन्होंने कांकेर से एक सप्ताह तक लगातार प्रयास किया, अंततः इन शावकों की तस्वीर खींचने में सफल रहे। यह तस्वीर वन्यजीव प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बन गई है और इस गांव को और भी प्रसिद्धि दिलाई है।
वन्यजीव संरक्षण की दिशा में प्रयास
इस क्षेत्र में वन्यजीवों के बढ़ते अस्तित्व को देखते हुए वन विभाग भी सक्रिय हो गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि तेंदुए और उनके शावक सुरक्षित रहें, विभाग ने कई सुरक्षात्मक कदम उठाए हैं। ग्रामीणों को भी वन्यजीवों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
निष्कर्ष
डुमाली गांव का यह नजारा वन्यजीवों के प्रति हमारे दृष्टिकोण को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। मादा तेंदुआ और उसके चार शावक न केवल इस गांव की शान बने हैं, बल्कि यह घटना वन्यजीव संरक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में वन्यजीवों के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व की मिसाल भी पेश करती है।