अयोध्या— श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र में विराजमान भगवान श्री रामलला का श्रृंगार प्रतिदिन अत्यंत भव्य और दिव्य रूप में होता है। आश्विन माह, शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि विक्रम संवत 2081 (5 अक्टूबर, शनिवार) के दिन भगवान रामलला का विशेष श्रृंगार किया गया, जो दर्शकों के लिए अलौकिक और अद्वितीय था। भगवान रामलला को भक्तों के समक्ष प्रतिदिन अलग-अलग रूपों में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे भक्तों की श्रद्धा और आस्था और भी प्रगाढ़ हो जाती है।
श्रृंगार और पूजन की प्रक्रिया
प्रभु श्रीरामलला की पहली आरती प्रतिदिन सुबह 6:30 बजे की जाती है। आरती से पहले भगवान को जगाया जाता है और फिर लेप लगाने, स्नान करवाने तथा वस्त्र धारण कराने की प्रक्रिया की जाती है। हर दिन और मौसम के अनुसार भगवान को अलग-अलग वस्त्र पहनाए जाते हैं। गर्मी के मौसम में हल्के सूती वस्त्र जबकि सर्दियों में स्वेटर और ऊनी वस्त्र धारण कराए जाते हैं।
दोपहर 12 बजे रामलला की भोग आरती होती है और शाम को साढ़े सात बजे संध्या आरती होती है। रात 8:30 बजे भगवान रामलला का शयन होता है और इस दौरान अंतिम बार दर्शन किए जा सकते हैं। भक्तों को 7:30 बजे तक दर्शन की अनुमति होती है।
रामलला को विशेष भोग
भगवान श्रीरामलला को दिन में चार बार भोग अर्पित किया जाता है। हर समय के अनुसार उन्हें अलग-अलग व्यंजन परोसे जाते हैं, जो विशेष रूप से राम मंदिर की रसोई में तैयार किए जाते हैं। सुबह की शुरुआत बाल भोग से होती है, जो प्रभु के प्रति विशेष श्रद्धा और सेवा का प्रतीक है।
दिल्ली से मंगाई जाती है विशेष फूलों की माला भगवान रामलला की आरती और श्रृंगार के दौरान उन्हें फूलों की विशेष माला पहनाई जाती है, जिसे दिल्ली से मंगाया जाता है। यह माला उनके श्रृंगार की शोभा को और भी दिव्य बना देती है।
5 अक्टूबर का दिन भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि इस दिन भगवान रामलला का शुभ अलौकिक श्रृंगार किया गया, जिसे देखने के लिए देशभर से हजारों की संख्या में भक्त अयोध्या पहुंचे थे।