शारदीय नवरात्रि का त्योहार भारत में विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा के तृतीय स्वरूप, माता चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना की जाती है। माता चंद्रघंटा का प्रतीकात्मक रूप अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें उनके सिर पर चंद्रमा और हाथ में घंटा होता है। चंद्रमा शांति का प्रतीक है, जबकि घंटा नाद का प्रतिनिधित्व करता है, जो शक्ति और ऊर्जा का स्रोत है।
देवी की शक्ति और नाद का महत्व
देवासुर संग्राम के दौरान देवी का घंटा नाद असुरों को काल के ग्रास बना देता है। यह घटना नाद की अपार शक्ति को दर्शाती है, जो भक्तों को शांति और ध्यान की प्राप्ति में मदद करती है। शास्त्रों में नाद की आराधना को महत्वपूर्ण माना गया है, और इसे सुर और संगीत के माध्यम से मानसिक संतुलन और वशीकरण का साधन माना जाता है।
पूजा विधि और मंत्र
माता चंद्रघंटा की उपासना के लिए विशेष ध्यान, मंत्र जाप और भक्ति की आवश्यकता होती है। भक्तजन निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हैं:
मंत्र:
“`पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥“`
इस दिन सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ भी मंगल फलदायी माना जाता है।
प्रिय भोग और उपासना
माता चंद्रघंटा को आमतौर पर मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं। विशेष रूप से खीर, लड्डू, चूरमा और हलवा उनके प्रिय भोग हैं। पूजा के दौरान भक्तजन शुद्धता और भक्ति का ध्यान रखते हैं।
अंत में
माता चंद्रघंटा की पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक विकास का एक साधन है। भक्तजन इस दिन विशेष प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से माता से शांति, समृद्धि और शक्ति की प्राप्ति की कामना करते हैं। इस नवरात्रि के दौरान मां चंद्रघंटा की आराधना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन लाने का प्रयास किया जाता है।
शारदीय नवरात्रि का यह पर्व हमें आत्मा की गहराईयों में जाकर मां की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है।