बलरामपुर (छत्तीसगढ़) – सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के महाबीरगंज गांव में यह मामला कुछ अलग ही निकला। 1954-55 से लेकर अब तक 680 एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे किए गए थे, और इस खेल में पटवारियों की मिलीभगत भी सामने आई है। दशकों से चली आ रही इस गड़बड़ी पर अब जाकर प्रशासन ने सख्त कदम उठाते हुए लगभग 400 एकड़ जमीन को मुक्त कराया है और उसे राजसात करने का आदेश दिया है।
दशकों से जारी था कब्जा
यह मामला रामानुजगंज तहसील के महाबीरगंज गांव का है, जहां ग्रामीणों ने 680 एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा था। 1954-55 से यह जमीन ग्रामीणों के कब्जे में थी, और इस पर पहले भी कई बार शिकायतें की जा चुकी थीं। पूर्व कलेक्टर के कार्यकाल में इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच की शुरुआत की गई थी, जिसके बाद वर्तमान कलेक्टर रिमिजियस एक्का ने इस पर कार्रवाई तेज की।
प्रशासनिक जांच में बड़े खुलासे
जांच की जिम्मेदारी तत्कालीन अपर कलेक्टर पैकरा के हाथ में थी, और उनके सेवानिवृत्त होने के बाद इसे वर्तमान अपर कलेक्टर इद्रंजीत बर्मन ने संभाला। जांच के दौरान यह पाया गया कि जमीन के दस्तावेजों में गंभीर अनियमितताएं हैं। खसरा नंबरों का मेल नहीं बैठना, स्याही का रंग अलग-अलग होना और लिखावट में भिन्नता जैसे कई मामले सामने आए। पटवारियों द्वारा दर्ज किए गए दस्तावेजों में असंगतियों की भरमार थी, जिससे इस गड़बड़ी में पटवारियों की मिलीभगत की आशंका और भी मजबूत हो गई।
कब्जेधारियों से दावा-आपत्ति मांगी गई
जांच के दौरान 680 एकड़ पर कब्जा जमाने वाले 18 ग्रामीणों से दावा-आपत्ति मंगाई गई। हालांकि, कब्जाधारियों द्वारा संतोषजनक जवाब नहीं दिया जा सका, जिसके बाद जांच अधिकारी ने अपनी अंतिम रिपोर्ट कलेक्टर को सौंपी। इसी रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर रिमिजियस एक्का ने 400 एकड़ जमीन को कब्जेधारियों से मुक्त कराकर राजसात करने का आदेश जारी किया।
पटवारियों की मिलीभगत, लेकिन कार्रवाई से बच रहे
जांच के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि इस अवैध कब्जे के पीछे कई पटवारियों की मिलीभगत थी। लेकिन प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि वह किस पटवारी पर कार्रवाई करे, क्योंकि समय के साथ यह पता लगाना मुश्किल हो गया था कि किस पटवारी ने कहां और कब हेरफेर की थी। इस कारण पटवारियों पर सीधी कार्रवाई कर पाना प्रशासन के लिए मुश्किल हो गया।
बड़े पैमाने पर कब्जा, बेचने की थी योजना
अवैध कब्जाधारियों ने एक-दो नहीं बल्कि 18 से 20 एकड़ तक की जमीन पर कब्जा कर रखा था। इस जमीन का बड़ा हिस्सा कोयला खदान क्षेत्र में आता है, और कब्जाधारी इस ‘काले सोने’ वाली जमीन को बेचकर बड़ा मुनाफा कमाने की योजना बना रहे थे। लेकिन प्रशासन की सख्त कार्रवाई से उनकी यह मंशा अधूरी रह गई।
कब्जा मुक्त कराई गई जमीन और कब्जाधारी
कलेक्टर के आदेश पर जिन कब्जाधारियों से जमीन खाली कराई गई है, उनमें इसहाक पिता नान्हू मिंया, सागर पिता ठूपा, खेलावन पिता घोवा, गुलाम नबी पिता जसमुद्दीन, मोइनुद्दीन पिता रहीम, चांद मोहम्मद पिता कलम मिंया, मंगरी पिता मोहम्मद अली और रसुलन पिता हुसैन मिंया शामिल हैं।
आगे की कार्रवाई
फिलहाल, 400 एकड़ जमीन को कब्जा मुक्त कर सरकारी दस्तावेजों में दर्ज कर लिया गया है। शेष 280 एकड़ जमीन के लिए भी प्रशासन द्वारा कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। आने वाले दिनों में इसी तरह की कड़ी कार्रवाई से पूरी जमीन को मुक्त कराने का लक्ष्य रखा गया है।
निष्कर्ष: यह मामला दिखाता है कि कैसे दशकों तक सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे चलते रहते हैं और प्रशासनिक तंत्र की ढिलाई या भ्रष्टाचार के कारण कार्रवाई में देरी होती है। लेकिन अब प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए इस पर कड़ी कार्रवाई की है, जिससे अन्य जिलों में भी ऐसे मामलों पर सख्त कदम उठाने का संदेश जाएगा।