कवर्धा, छत्तीसगढ़ – गरबा महोत्सव, जो कि देशभर में सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का प्रतीक माना जाता है, इस बार कवर्धा में आयोजित नहीं होगा। यह स्थिति उन दिनों में आई है जब छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और कवर्धा विधायक विजय शर्मा अपने हर भाषण में भारतीय मान बिंदु और सनातन सभ्यता की बात करते हैं। लेकिन उनके तथाकथित समर्थक इस बार गरबा जैसे पारंपरिक आयोजनों का विरोध कर रहे हैं।
कवर्धा में गरबा महोत्सव की शुरुआत विजय शर्मा के नेतृत्व में हुई थी, जो स्वयं इसके फाउंडर मेंबर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि उनके गृह जिले में उनके समर्थक इस सांस्कृतिक आयोजन का विरोध क्यों कर रहे हैं? यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह क्षेत्र के सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।
बीजेपी के कुछ समर्थक छत्तीसगढ़िया वाद के नाम पर भ्रामक जानकारी फैला रहे हैं, जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति के खिलाफ है। हालाँकि, पिछले कई वर्षों से कवर्धा में गरबा का आयोजन पारिवारिक और धार्मिक माहौल में होता आया है, जिसमें शहर के नेता, अधिकारी, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि और पत्रकार शामिल होते रहे हैं।
फिर इस बार ऐसा क्या हो गया कि गरबा जैसे धार्मिक आयोजन का विरोध किया जा रहा है? क्या कवर्धा का माहौल इतना खराब हो गया है कि अब सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित नहीं किए जा सकते? यह एक चिंताजनक स्थिति है, जहां तथाकथित समर्थक अपने ही समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर कर रहे हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन लोगों के बीच एकता और उत्साह को बढ़ाते हैं। लेकिन आज कवर्धा में हो रही घटनाओं ने इस शांति प्रिय नगर की छवि को खराब कर दिया है। ऐसे में, त्योहारों का विरोध करने की बात समझ से परे है।
क्या हमें इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिए कि धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों का बंद होना केवल एक परंपरा का खत्म होना नहीं, बल्कि समाज में विभाजन और असमानता की बढ़ती प्रवृत्तियों का संकेत है? हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हमारे सांस्कृतिक उत्सवों को न केवल सुरक्षित रखा जाए, बल्कि उन्हें बढ़ावा भी दिया जाए, ताकि कवर्धा की पहचान और गरिमा बनी रहे।