छत्तीसगढ़ की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति का सफल उदाहरण: दो पूर्व नक्सलियों की प्रेरक कहानी

एमएमसी जोन, केबी डिवीजन के 02 आत्मसमर्पित नक्सली को बनाया गया आरक्षक

Pushpraj Singh Thakur
Pushpraj Singh Thakur - Editor in Chief 41 Views
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कवर्धा : छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले में दो पूर्व नक्सलियों की प्रेरक कहानी ने राज्य सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति की सफलता को उजागर किया है। दिवाकर उर्फ किशन उर्फ लिबरू कोर्राम और उसकी पत्नी कुमारी लक्ष्मी देवे ने राज्य की आत्मसमर्पण नीति से प्रेरित होकर 23 जून 2021 को जिला कबीरधाम में आत्मसमर्पण किया था। दिवाकर, जो पहले भोरमदेव एरिया कमेटी का सचिव था, एक समय पर छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के ग्राम हदापार का निवासी था और नक्सली संगठन से जुड़ने के लिए मजबूर किया गया था। वह 2008 से लेकर 2021 तक विभिन्न नक्सली संगठनों में सक्रिय रहा और इस दौरान उसे सीसीएम गणपति के गार्ड से लेकर डीवीसी के पद तक प्रमोट किया गया।

आत्मसमर्पण के बाद, दिवाकर ने नक्सली संगठनों की कई महत्वपूर्ण जानकारियां पुलिस को प्रदान कीं। उसकी निशानदेही पर पुलिस ने भोरमदेव एरिया के बकोदा जंगल में छिपाए गए 10 लाख रुपये नगद और अन्य नक्सली सामग्रियों को बरामद किया। दिवाकर के खिलाफ 16 अपराध पंजीकृत थे और उस पर 8 लाख रुपये का इनाम घोषित था।

दूसरी ओर, मंगलू बेको उर्फ तीजू ने अपनी पत्नी राजे उर्फ वनोजा के साथ 25 जून 2020 को बीजापुर जिले में आत्मसमर्पण किया। ये दोनों पहले नक्सली संगठन विस्तार प्लाटून नंबर-03 के पार्टी सदस्य थे। मंगलू ने 2014 में नक्सली संगठन में शामिल होने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभाई। 2019 में राजे से विवाह के बाद, दोनों ने नक्सली संगठन से बाहर निकलने का निर्णय लिया और छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति से प्रेरित होकर आत्मसमर्पण किया। मंगलू और राजे पर 2-2 लाख रुपये का इनाम घोषित था।

नक्सलियों

इन दोनों पूर्व नक्सलियों की महत्वपूर्ण भूमिका न केवल अपने आत्मसमर्पण तक सीमित रही बल्कि उन्होंने शासन की नीति के तहत अन्य नक्सलियों को भी आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित किया। इस प्रकार, राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के तहत नक्सलियों को मुख्यधारा में वापस लाने के प्रयासों को मजबूती मिली।

आत्मसमर्पण के बाद, दिवाकर और मंगलू दोनों को जिला पुलिस कबीरधाम में भर्ती किया गया, जहां उन्होंने नक्सल विरोधी अभियानों में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने जिले के संवेदनशील क्षेत्रों में पुलिस के साथ मिलकर काम किया और नक्सली गतिविधियों की जानकारी जुटाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनकी मदद से पुलिस ने कई नक्सल विरोधी अभियानों में सफलता हासिल की और नए फारवर्ड कैम्प भी स्थापित किए गए।

दिवाकर और मंगलू को शिक्षा के महत्व को समझाते हुए, कबीरधाम पुलिस ने उन्हें 10वीं की ओपन परीक्षा के लिए प्रेरित किया और उन्हें आवश्यक शिक्षण सामग्री प्रदान की। इसके परिणामस्वरूप, दिवाकर और उसकी पत्नी ने 10वीं की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की, जबकि मंगलू को पूरक प्राप्त हुआ।

छत्तीसगढ़ सरकार की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति के तहत, 16 अगस्त 2024 को दिवाकर और मंगलू को पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर नियुक्ति प्रदान की गई। इनकी यात्रा इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि राज्य की यह नीति न केवल प्रभावी है बल्कि उन लोगों के लिए आशा की किरण भी है, जो नक्सलवाद से बाहर निकलकर एक सम्मानजनक जीवन जीना चाहते हैं। यह नीति उन लोगों को शांति, सुरक्षा, और समाज में पुनर्स्थापना का मार्ग दिखाती है, जो नक्सलवाद से जुड़कर खुद को खो चुके थे।

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Pushpraj Singh Thakur
By Pushpraj Singh Thakur Editor in Chief
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आप सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं एवं वर्तमान में India News के जिला ब्यूरोचीफ के रूप में काम कर रहे हैं। आप सॉफ्टवेयर डेवलपर एवं डिजाइनर भी हैं।

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