वन्यजीव सुरक्षा में लापरवाही या प्रशासनिक दबाव? लोहारा वन विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल।

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कवर्धा। लोहारा वन परिक्षेत्र में वानरों की क्रूर हत्या और वन विभाग की निष्क्रियता ने न केवल क्षेत्रवासियों को, बल्कि समाज के सजग संगठनों को भी झकझोर कर रख दिया है। बीते दिनों कोसमंदा और दरिगवां गांवों में हुए घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वन्यजीवों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है, वे या तो दबाव में हैं या कर्तव्य विमुख।

13 मई को ग्राम कोसमंदा में लगभग 15 वानरों को एयरगन से मार दिया गया। ग्रामीणों के साथ कथित रूप से सरपंच और शिकारी भी इस अमानवीय कृत्य में शामिल रहे। इस घटना को घटे 10 दिन बीत चुके हैं, लेकिन आज तक न कोई ठोस जांच हुई, न कोई बयान लिया गया और न ही किसी आरोपी को गिरफ्तार किया गया।

इसी प्रकार, ग्राम दरिगवां में भी वानरों की हत्या की सूचना सामने आई, जहां बजरंग दल की सक्रियता के चलते मौके से तीन आरोपियों को पकड़ा गया, जिनमें एक नाबालिग भी शामिल था। लेकिन जब ग्रामीणों ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए रात्रि 11 बजे वन विभाग कार्यालय पहुंचकर जवाबदेही मांगी, तब भी विभाग ने मात्र मुचलके की औपचारिकता निभाकर मामले को शांत करने की कोशिश की। पूछताछ, बयान या कोई विधिवत प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।

इस लापरवाही और ढुलमुल रवैये से क्षुब्ध होकर बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने 24 मई को लगभग 60 लोगों के साथ वन विभाग कार्यालय का घेराव किया। पहले से सूचना देने के बावजूद विभागीय अधिकारी कार्यालय आने से कतराते रहे और जिन प्रतिनिधियों को भेजा गया, वे भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए। इससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह किसी राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव का परिणाम है?

बजरंग दल ने प्रशासन को तीन दिनों का अल्टीमेटम देते हुए चेतावनी दी है कि यदि दोषियों पर कार्यवाही नहीं हुई और वन विभाग ने जवाबदेही नहीं निभाई, तो आंदोलन और उग्र रूप ले सकता है।

यह केवल वन्यजीव संरक्षण का मामला नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था और सरकारी जवाबदेही का प्रश्न भी है। यदि ऐसे मामलों में भी प्रशासन आंख मूंदे बैठा रहेगा, तो समाज का कानून और न्याय पर से विश्वास उठना स्वाभाविक है। अब देखना यह होगा कि क्या वन विभाग अपने दायित्व का निर्वहन करेगा या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।

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