कांकेर। छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के सुदूरवर्ती गांवों के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। बासकुंड पंचायत के आश्रित गांवों – ऊपर तोनका, नीचे तोनका, और चलाचूर के निवासियों को हर साल अपने दम पर लकड़ी के पुल बनाने को मजबूर होना पड़ता है। बारिश के महीनों में ये ग्रामीण चिनार नदी को पार करने के लिए लकड़ी का अस्थायी पुल बनाते हैं, क्योंकि नदी पर पक्के पुल का निर्माण अब तक नहीं हो सका है। यह समस्या कई वर्षों से चली आ रही है, लेकिन शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
हर साल अस्थायी पुल का निर्माण, जोखिम भरा सफर
ग्रामीणों का कहना है कि बरसात के मौसम में जब नदी का जलस्तर बढ़ जाता है, तब इन गांवों के लोग मजबूरन लकड़ी का पुल बनाकर जान जोखिम में डालकर नदी पार करते हैं। दो साल पहले इन गांवों तक पक्की सड़क तो बना दी गई थी, लेकिन चिनार नदी पर पुल का निर्माण अब तक नहीं हो पाया। हर साल की तरह इस साल भी ग्रामीणों ने एकजुट होकर चंदा जमा किया और श्रमदान से लकड़ी का पुल बना लिया। इस पुल के निर्माण से स्कूली बच्चों को आने-जाने में थोड़ी राहत मिली है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि लकड़ी का पुल हमेशा सुरक्षित नहीं होता।
जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से ग्रामीणों की अपील
ग्रामीणों ने कई बार अपने जनप्रतिनिधियों और संबंधित अधिकारियों से पुल निर्माण की गुहार लगाई, लेकिन उनकी इस गंभीर समस्या पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के मौसम में लकड़ी का पुल भी बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त हो सकता है, जिससे आने-जाने में बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
अपनी सुरक्षा के लिए ग्रामीणों की चिंता
इस स्थिति में, ग्रामीणों को हर वक्त हादसे का डर सताता रहता है। हालांकि, फिलहाल तो उन्होंने अपने संसाधनों और श्रम से लकड़ी का पुल बना लिया है, लेकिन यह समाधान अस्थायी है। ग्रामीणों का कहना है कि अब वे थक चुके हैं और इस इंतजार में हैं कि कब उनके गांव के लिए पक्का पुल बनेगा। उन्होंने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से अपील की है कि वे उनकी इस समस्या पर ध्यान दें और जल्द से जल्द स्थायी पुल का निर्माण करवाएं ताकि उनकी मुश्किलें कम हो सकें और उन्हें सुरक्षित परिवहन की सुविधा मिल सके।