छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में दशहरे पर होती है रावण की पूजा
बालोद : छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुरुर ब्लॉक के ग्राम तार्री में दशहरे के दिन शाम को रावण की पूजा की अनोखी परंपरा निभाई जाती है। जहां देशभर में रावण का पुतला जलाया जाता है, वहीं इस गांव में रावण की मूर्ति की पूजा की जाती है। इस परंपरा की शुरुआत कई साल पहले हुई थी, और ग्रामीण आज भी इसे पूरी श्रद्धा के साथ निभा रहे हैं।
गांव में एक विशेष स्थान पर रावण की मूर्ति स्थापित की गई है, जिसमें रावण को कोर्ट और पैंट पहने दिखाया गया है। इस मूर्ति की खासियत यह है कि रावण सूट-बूट में है, जो पारंपरिक रावण की छवि से बिल्कुल अलग है। इस गांव में एक तरफ भगवान राम का मंदिर है, जहां रोज़ पूजा-अर्चना की जाती है, जबकि दूसरी ओर रावण की मूर्ति की पूजा सिर्फ दशहरे के दिन की जाती है।
रावण के ज्ञान की पूजा
ग्रामवासियों का मानना है कि रावण अत्यधिक विद्वान और महान पंडित था। उसकी विद्वता और कला कौशल के प्रति सम्मान स्वरूप दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है। ग्रामीण बताते हैं कि पहले मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग होता था, लेकिन बाद में स्थायी सीमेंट की मूर्ति का निर्माण किया गया।
मूर्ति के जर्जर हो जाने के कारण अब इसका पुनर्निर्माण किया जा रहा है, और ग्रामीणों का कहना है कि नई मूर्ति भी उसी अंदाज में बनेगी, जिसमें रावण सूट और पैंट पहने नजर आएंगे।
यह परंपरा क्यों है विशेष?
यह परंपरा इसलिए अनूठी है क्योंकि दशहरे के दिन जब देश के अन्य हिस्सों में रावण दहन होता है, तब इस गांव में रावण को सम्मानपूर्वक पूजा जाता है। ग्रामीणों के अनुसार, यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आने वाले समय में भी इसे जारी रखने का वादा है।
यह कहानी दर्शाती है कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराएं और मान्यताएं दशहरे के त्योहार को अनोखा और विविधता से भरा बनाती हैं।